चल-चरखा एवं हथकरघा का इतिहास पूरा विश्व इस बात का ऋणी है कि भारत में वस्त्र निर्माण कला और हस्तशिल्पों का उद्भव हुआ , कलाएं परिष्कृत हुई l 8000 वर्ष पुरानी मोहनजुदाड़ो की खुदाई में मिली मूर्तियों के कपड़े , वेदों और उपनिषदों की ऋचाओं में वर्णित देवताओं के वस्त्र, ई. पू. 700 वर्ष पुरानी वाल्मीकि रामायण के श्लोकों में राम - सीता, रावण के वस्त्रों का उल्लेख, ये सभी भारत की परिष्कृत हस्तनिर्मित वस्त्र कलाओं के साक्ष्य है l प्रागैतिहासिक काल से लेकर 17 वी शताब्दी तक हस्तनिर्मित वस्त्र उद्योग की विकास यात्रा निर्बाध रूप से अग्रसर होती रही l उन्नत रेशमी, सूती, धातुओं की जरी से सजे हुए वस्त्रों की ख्याति सारे विश्व में फैल गई थी | जर्मनी और इंग्लैंड की रानियां भारत के कपड़ों से अत्यंत प्रभावित थी, इनके बदले विदेशों से मुहमांगा दाम मिलता था l इसी कारण ब्रिटेन की संसद में सन 1721 में कलिको एक्ट पास किया गया | जिसके अंतर्गत इंग्लैंड में भारत निर्मित कपड़े के आयात पर रोक
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पॉवर लूम पर बनने वाले वस्त्रों में साईंजिंग प्रक्रिया के अंतर्गत धागों को मजबूत करने के लिए मटन टेलो का उपयोग धागों के ऊपर होता है| जबकि हथकरघा पर बने हुए वस्त्रों में साईंजिंग प्रक्रिया का उपयोग नहीं होता है| जिससे ये वस्त्र पूर्णतः अहिंसक होते हैं| चल-चरखा में ऐसे वस्त्रों को महिलाएं अपने हाथों से हथकरघा पर बुनती है|